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Friday, May 1, 2020

सन्नाटे के गीत गा रहे!

सन्नाटे के गीत गा रहे
झींगुर-चमगादर!
रैन अँधेरी
ऊंघ रहा बरगद
जग सोया है,
मौन बांसुरी
शबनम के आँसू
मग रोया है;
दूर गाँव से
चीख-चिल्लपों के
उभरे है स्वर!
खिलती कली
सिसक कर रोई
खोल न पाई मन,
मौसम के
पल-छिन परिवर्तन
दे न सके सावन;
ऊपर से
हो गई कलंकित
चाहत की चादर!

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